रविवार, 27 मई 2018

osho chintan: ghat bhulana 5

ओशो चिंतन: घाट भुलाना 5
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निष्ठा-श्रद्धा का नहीं, बंधन है स्वीकार।
ढाँचे में बँधती नहीं, जैसे मुक्त बयार।।
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श्रद्धा-निष्ठा पर बने, ढाँचा जड़ मजबूत।
गत-आगत तक एक सा, जड़ता प्रबल-अकूत।।
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यदि न बदलता; तो हुआ, समझें जीवन-अंत।
हर पल नया कहूँ तभी, हो चिंतन में तंत।।
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हर कल हो यदि आज सा, ले केवल दोहराव।
तब समझे मैं मर गया, शेष न यदि बदलाव।।
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मित्र जुड़े; चाहें बनूँ,  मैं उनके अनुकूल।
नहीं  बना तो शत्रु बन,  हो जाते प्रतिकूल।।
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दोष न उनका; मानता, अपना आप कसूर।
वे ज्यों का त्यों चाहते, मुझे नहीं मंजूर।।
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जीवन में सादृश्यता, न्यून; अधिक है  भेद।
मात्र मृत्यु है एक सी, सत्य यही; क्यों खेद?
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सूरज कल जैसा उगे, लिए पुराना रूप।
तब पूजोगे यदि कहो, मान न उगे अनूप।।
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28.5.2018, 07999559618
salil.sanjiv@gmail.com
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28-5-2018, 07999449618
salil.sanjiv@gmail.com
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दोहा सलिला

राजनीति में हो रहा, है दो दूनी पाँच।
हीरे शेष न रह गए, बेच-खरीदो काँच।।
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लोक न मर्यादित रहा, तोड़ रहा कानून।
लूट-कुचलकर कर रहा, लोक; तंत्र का खून।।
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नाश प्रकृति का कर रहा, मानव; दानव भाँति।
प्रकृति कुद्ध करती खड़ी,  विपदाओं की पाँति।।
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जिसको अवसर मिल रहा,  वही कर रहा लूट।
मर्यादाएँ शेष जो, नित्य रही हैं टूट।।
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भ्रष्ट करें भगवान कह, ऋषि-संतों को भक्त।
तन-मन-धन अर्पित करें, चाह न हों अनुरक्त।।
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28-5-2018, 07999449618
salil.sanjiv@gmail.com
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